भीमा-कोरेगांव हिंसा में हाई कोर्ट ने नहीं दी राहत, नजरबन्द एक्टिविस्ट्स पर गिरफ्तारी की लटकी तलवार

भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में नजरबन्द किये गए एक्टिविस्ट्स अरुण फेरेरा और वेरनॉन गोलसल्विस के द्वारा की गयी याचिका को पुणे सत्र न्यायालय ने खारिज कर दिया है। जिसमे सात दिन और हॉउस अरेस्ट की सीमा बढ़ने की मांग की गयी थी।
भीमा कोरेगांव केस के एक एक्टिविस्ट्स अरुण के हाउस अरेस्ट की सीमा 26 अक्टूबर को ख़त्म हो गयी है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने अंतरिम रिफील देने से मन कर दिया है। इस कारण अब कार्यकर्ताओ की गिरफ़्तारी कभी भी हो सकती है। दूसरीओर इन सब पर अभियोजन पक्ष ने कार्यकर्ताओ की जमानत के खिलाफ अपना बयान दिया है की कार्यकर्ताओ के खिलाफ पुख्ता सबुत है जो प्रतिबन्ध संगठन सीपीआई के साथ उसके सबंध स्थापित करते है।
पुणे पुलिस ने 28 अगस्त को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में अरुण फेरेरा,वर्नोन गोंजाल्विस और गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया था। उसके बाद से इन कार्यकर्ताओ को नजर बंद कर दिया गया था। परन्तु दिल्ली हाईकोर्ट ने गौरव नवलखा को रिहा कर दिया था। इस साल की शुरुआत में पुणे के पास भीमा-कोरेगांव में जातीय हिंसा के दौरान एक की मौत हो गयी थी जिसके कारण पुरे राज्य में अलग-अलग जिलों में हिंसा फ़ैल गयी थी।
जनवरी 2018 में भीमा गाँव में हिंसा भड़की थी। पुणे पुलिस ने इस मामले में सामाजिक सुरेंद्र गडलिंग,प्रोफ़ेसर शोमा सेन, सुधीर धावले, महेश राउत और रोना विल्सन को जून में गैरकानूनी गतिविधियां अघिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था। माओवादियों से रिश्ता रखने और उनके साथ मिल कर हिंसा भड़काने के जुर्म में इनकी गिरफ्तारी की गयी थी। यूपीए के तहत 90 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल करना अनिवार्य है इसके पश्चात अगर कोर्ट सहमत है तो वह 90 दिन का और समय दे सकता है। कोरेगांव हिंसा मामले में पुणे पुलिस को निचली अदालत ने 90 दिन का अतिरिक्त समय दिया था। इसी कारण वकील गडलिंग ने चुनौती दी थी। इस पर हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश पर रोक लगा दी।
न्यूज़ क्रेडिट: जनसत्ता
