इतिहास में पहली बार इस दलित व्यक्ति को चुना गया पार्टी का महासचिव, दलित समाज में ख़ुशी

आज भी समाज में जाति को लेकर लोगो से भेदभाव किया जाता है। भारत के कई ऐसे क्षेत्र है जहां जाति के नाम पर लोगो को अनदेखा किया जाता है। समाज में लोगो की मानसिकता इस कदर गिर गयी है की जाति के नाम पर वह समाज को बाँट रहे है। चाहे वह कोई बड़ा व्यक्ति क्यों ना हो फिर भी उसे जाति से जुड़े विवादों का सामना करना पड़ता है।
ऐसे में अधिकतर पार्टियों में दलित समाज के लोग भी शामिल है फिर भी उनके साथ अपनों जैसा बर्ताव नहीं किया जाता। लोगो की यही मानसिकता दर्शाती है की आज भी कई ऐसे क्षेत्र है जहाँ छोटे समाज के लोगो को इज़्ज़त नहीं दी जाती। परन्तु कई ऐसे क्षेत्र है जहाँ दलित समाज के लोगो ने बड़े बड़े काम किये है। कई ऐसे मौके आये है जिसमे दलित समाज के लोगो ने ऊँची जाति के लोगो को मुहतोड़ जवाब दिया है।
ऐसे ही एक और शख्स ने आज के जमाने में भी जातिवाद के आधार पर भेदभाव करने वाले लोगो को मुहतोड़ जवाब दिया है। CPI पार्टी यानि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के जनरल सेकेट्री डी राजा को महासचिव चुना गया। वह पार्टी के ऐसे पहले दलित व्यक्ति है जिन्हे महासचिव चुना गया। कम्युनिस्ट पार्टियों के 95 साल के इतिहास में किसी कम्युनिस्ट पार्टी के पहले ऐसे महासचिव होंगे, जो दलित समुदाय से आते हैं।
पिछले महासचिव सुधाकर रेड्डी के स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा देने के बाद तीन दिनों तक चली पार्टी की नेशनल काउन्सिल की बैठक में पार्टी की बागडोर डी राजा को सौंपी गई है।
कम्युनिस्ट पार्टियों को अक्सर यह आलोचना झेलनी पड़ती है कि जाति के प्रश्न को ईमानदारी से संबोधित नहीं करतीं और नेतृत्व के मामले में आज भी उनके यहाँ समाज के कथित ऊंचे तबके के लोगों का दबदबा है। दलित राजनीति से कम्युनिस्ट पार्टियों के तीखे संबंध लगभग उतने ही पुराने हैं जितना भारत में उनका अपना अस्तित्व है।
इस पार्टी में भी जातिवाद मुद्दों से जुड़े कई किस्से सामने आये है। पार्टी को कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। परन्तु अब ऐसा लगता है की पार्टी में सामान रूप से सभी को मौका दिया जा रहा है। CPI में पहली बार ऐसा हुआ है किसी दलित समाज के व्यक्ति को बड़ा पद मिला है। ऐसे में उन सभी के लिए एक बड़ी बात है जो अक्सर जातिवाद का सवाल उठा कर लोगो को निचा दिखा देते है और जीवन में कुछ न कर पाने का दोष मड देते है।
